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मकराकृति गोपाल कैं
मकराकृति गोपाल कैं, सोहत कुंडल कान।धर्यौ मनौ हिय-धर समरु, ड्यौढ़ी लसत निसान॥
बिहारी
प्यारी तेरों अधर रस
प्यारी तेरों अधर रस, क्यों बिसरें गोपाल।बेसर निरमल मुक्तहू, जिहिं परसत भों लाल॥
दयाराम
साकत-बामन जिन मिलौ
साकत-बामन जिन मिलौ, वैष्णव मिलि चंडाल।जाहि मिलै सुख पाइये, मनो मिले गोपाल॥
हरीराम व्यास
अड़सठ तीरथ में फिरे
अड़सठ तीरथ में फिरे, कोई बधारे बाल।हिरदा शुद्ध किया बिना, मिले न श्री गोपाल॥
गवरी बाई
निज बल कौं परिमान तुम
निज बल कौं परिमान तुम, तारै पतित बिसाल।कहा भयौ जु न हौं तरतु, तुम खिस्याहु गोपाल॥